दर्पण
सब के सब धूमिल
औंधे मुंह सूरज के हांथों
क़त्ल हुई प्रतिभाएं
कोइ सूरत क्या देखे
सब बिम्बहीन गंगाएं
ताने हुए थे इन्द्रधनुष
बिखर गए कुहरिल-कुहरिल
न्यायों की मृगतृष्णा के
प्यासे
वादी, प्रतिवादी
बंदूकों की छाया में
ऊबे-ऊबे अपराधी
तथाकथित रामों की
गुहराएँ
आज के अजामिल
भीड़ों में रस्ते खोये
अनजानों में पहचानें
खुद की तलाश में
बार-बार
आतीं एक ठिकाने
पंथ-प्रदर्शक
मिलते हैं
जेबों में डाले मंजिल
सब के सब धूमिल
औंधे मुंह सूरज के हांथों
क़त्ल हुई प्रतिभाएं
कोइ सूरत क्या देखे
सब बिम्बहीन गंगाएं
ताने हुए थे इन्द्रधनुष
बिखर गए कुहरिल-कुहरिल
न्यायों की मृगतृष्णा के
प्यासे
वादी, प्रतिवादी
बंदूकों की छाया में
ऊबे-ऊबे अपराधी
तथाकथित रामों की
गुहराएँ
आज के अजामिल
भीड़ों में रस्ते खोये
अनजानों में पहचानें
खुद की तलाश में
बार-बार
आतीं एक ठिकाने
पंथ-प्रदर्शक
मिलते हैं
जेबों में डाले मंजिल