उस दर्पण को
रचा हमीं ने
उसमें अपना रूप
नहीं दिखता है
दर्पण, राजा है
दर्पणकार अपरिचित-सा परजा
दर्पण की शानो-शौकत पर
है अरबों का खर्चा
देखा?
अपनी ही संसद के
वह ग्रह-नक्षत्र
सँवारा करता है
दर्पण में
चलती रहती है
विकास की द्वन्द्व-कथा
ऐसे सब्ज-बाग हैं
जिनकी धरती का नहीं पता
इससे पहले तोष बहुत था
अब तो केवल
असंतोष उगता है
वोट अमृत है
इसको पीकर
अमर हो गया दर्पण
कोई तोड़े तो जी उठता है
हर टुकड़े में दर्पण
राहु-केतुओं का हर घर में
हर किरच-कोंण का
दंश दहकता है।
रचा हमीं ने
उसमें अपना रूप
नहीं दिखता है
दर्पण, राजा है
दर्पणकार अपरिचित-सा परजा
दर्पण की शानो-शौकत पर
है अरबों का खर्चा
देखा?
अपनी ही संसद के
वह ग्रह-नक्षत्र
सँवारा करता है
दर्पण में
चलती रहती है
विकास की द्वन्द्व-कथा
ऐसे सब्ज-बाग हैं
जिनकी धरती का नहीं पता
इससे पहले तोष बहुत था
अब तो केवल
असंतोष उगता है
वोट अमृत है
इसको पीकर
अमर हो गया दर्पण
कोई तोड़े तो जी उठता है
हर टुकड़े में दर्पण
राहु-केतुओं का हर घर में
हर किरच-कोंण का
दंश दहकता है।