हम ज़मीन पर ही रहते हैं
अम्बर पास चला आता है
अपने आस-पास की सुविधा
अपना सोना अपनी चांदी
चाँद-सितारों जैसे बंधन
और चांदनी-सी आजादी
हम शबनम में भींगे होते
दिनकर पास चला आता है
हम न हिमालय की ऊंचाई
नहीं मील के हम पत्थर हैं
अपनी छाया के बाढ़े हम
जैसे भी हैं हम सुन्दर हैं
हम तो एक किनारे भर हैं
सागर पास चला आता है अपनी बातचीत रामायण
अपने काम-धाम वृन्दावन
दो कौड़ी का लगा सभी कुछ
जब-जब रूठ गया अपनापन
हम तो खाली मंदिर भर हैं
ईश्वर पास चला आता है।
अम्बर पास चला आता है
अपने आस-पास की सुविधा
अपना सोना अपनी चांदी
चाँद-सितारों जैसे बंधन
और चांदनी-सी आजादी
हम शबनम में भींगे होते
दिनकर पास चला आता है
हम न हिमालय की ऊंचाई
नहीं मील के हम पत्थर हैं
अपनी छाया के बाढ़े हम
जैसे भी हैं हम सुन्दर हैं
हम तो एक किनारे भर हैं
सागर पास चला आता है अपनी बातचीत रामायण
अपने काम-धाम वृन्दावन
दो कौड़ी का लगा सभी कुछ
जब-जब रूठ गया अपनापन
हम तो खाली मंदिर भर हैं
ईश्वर पास चला आता है।