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दिनेश सिंह |
रास्ते छोटे छोटे।
जीवन उतना जितने रिश्ते
सांसें उतनी जितने बोल
उतनी प्यास कि जितना पानी
दुःख उतना जितना भूगोल
संझा तुलसी चौरा टपके आँख
दिवस का दर्द कचोटे।
कोहबर की यादें गठियाये
आँचल में मुरझाये फूल
इतिहासों के पन्नों पर
करलीं सारी गलतियां क़ुबूल
हतप्रभ तकती चाल समय की
और चलन के सिक्के खोटे।
थे पहाड़ से पिता हमारे
पुरखे थे पेड़ों की छाँव
बर्फ और पत्तों के नीचे
बसा हुआ था सारा गाँव
भूख-प्यास में देह गलाते
अंग जलाते कसे लंगोटे।
[ संकलन : माँ । दिनेश सिंह ]