लीलाधर मंडलोई
भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री लीलाधर मंडलोई का जन्म 31 अक्टूबर 1953 (?) में ग्राम गुढ़ी, छिंदवाडा (म.प्र.) में हुआ। आकाशवाणी के पूर्व महानिदेशक रह चुके मंडलोई जी न केवल लोकप्रसारण विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते हैं, बल्कि साहित्य के क्षेत्र में भी विशेष ख्याति अर्जित कर चुके हैं। देश-विदेश में साहित्यिक यात्राएँ कर हिंदी का प्रचार-प्रसार करने वाले मंडलोई जी की प्रमुख कृतियाँ : कविता-संग्रह : घर-घर घूमा, रात-बिरात, मगर एक आवाज, देखा-अदेखा, ये बदमस्ती तो होगी, देखा पहली दफा अदेखा, उपस्थित है समुद्र ; गद्य साहित्य : अंदमान-निकोबार की लोक कथाएँ, पहाड़ और परी का सपना, चाँद का धब्बा, पेड़ भी चलते हैं, बुंदेली लोक रागिनी। विविध : चेखव की कथा पर फिल्म एवं प्रख्यात कथाकार ज्ञानरंजन पर वृत्तचित्र का निर्देशन। सम्मान : मध्य प्रदेश साहित्य परिषद के रामविलास शर्मा सम्मान से पुरस्कृत, वागीश्वरी सम्मान, रज़ा सम्मान, पूश्किन सम्मान और नागार्जुन सम्मान। संपर्क : ए 2492. नेताजी नगर, नई दिल्ली-23 । ई-मेल : ld_mondloi@rediffmail.com
मैं दूंगा हिसाब
मैं दूंगा हिसाब
अपनी मूर्खता, दर्प, अहंकार और लोभ का
मेरे भीतर था कोई संदेह
जिसपे मैं करता रहा सर्वाधिक विश्वास
मैं मरना नहीं चाहता था उसके हाथ
जबकि जीना तुम्हारे साथ कितना कठिन
यह एक सीधी-सरल बात है कि
तुम नहीं चाहते मुझे
मेरे लिए यह लज्जा की बात है
जबकि तुम मेरे इतने अभिन्न
मैं नि:शब्द हूँ एक वृक्ष की तरह
इसका मतलब यह नहीं कि
मैं नहीं हो सकता तुम्हारी तरह
होना तुम्हारी तरह एक लज्जा की बात है।
पराजय का अर्थ
पराजय का अर्थ विजय है
यह कौन जानता है मुझ से अधिक
जो सबसे बुरा
सबसे अधिक सुन्दर है
इसे कौन जान सकता है सिवाय मेरे
जो डूबते हैं, जानते हैं वे ही
उस ज़मीन का पता
जिसमें छुपा है आनन्द जीवन का
मैं तो हूँ पराजय का मित्र
लोग इसे अनुभव कहते हैं बस
हैसियत
उसने तीन चार प्यारे-प्यारे नामों से
मौत को पुकारा
मगर मौत नहीं आई
उसके बाद मौत ने ज़िन्दगी को
तीन चार प्यारे-प्यारे नामों से पुकारा
बस, इतने में वहाँ हज़ारो लाशें बिछ चुकीं थीं।
मैं जानता था
कितनी लफ़्फ़ाजी कर सकता हूँ मैं
मैंने नहीं चुना वह रास्ता
मीडिया प्रमुख होने के बाद
मैं नहीं था मिडिया में और
उन्होंने तस्लीम कर दिया इसे मेरी कमज़ोरी
वे नहीं जानते थे कि
एक लेखक के लिए कितनी बड़ी हो सकती है
लफ़्फ़ाजी की सज़ा।
उसने तीन चार प्यारे-प्यारे नामों से
मौत को पुकारा
मगर मौत नहीं आई
उसके बाद मौत ने ज़िन्दगी को
तीन चार प्यारे-प्यारे नामों से पुकारा
बस, इतने में वहाँ हज़ारो लाशें बिछ चुकीं थीं।
नदी
लाख कोशिश की
कि चल जाए
दवाइयों का जादू
सेवा से हो जाएं ठीक
नहीं हुआ चमत्कार लेकिन
मां की आंखें
उस गंगाजली पर थीं
जिसे भर लाई थीं वे
अपनी पिछली यात्रा में
धर्म में रहा हो उनका विश्वास
ऐसा देखा नहीं
वे बचे-खुचे दिनों में
रखे रहीं उस कुदाल को
जिससे तोड़ा उन्होंने कोयला
पच्चीस बरस तक काली अंधेरी खानों में
मां जल से उगी हैं
नदी को वे मां समझती थीं।
मैं जानता था
लाख कोशिश की
कि चल जाए
दवाइयों का जादू
सेवा से हो जाएं ठीक
नहीं हुआ चमत्कार लेकिन
मां की आंखें
उस गंगाजली पर थीं
जिसे भर लाई थीं वे
अपनी पिछली यात्रा में
धर्म में रहा हो उनका विश्वास
ऐसा देखा नहीं
वे बचे-खुचे दिनों में
रखे रहीं उस कुदाल को
जिससे तोड़ा उन्होंने कोयला
पच्चीस बरस तक काली अंधेरी खानों में
मां जल से उगी हैं
नदी को वे मां समझती थीं।
मैं जानता था
मैं जानता था
कितनी लफ़्फ़ाजी कर सकता हूँ मैं
मैंने नहीं चुना वह रास्ता
मीडिया प्रमुख होने के बाद
मैं नहीं था मिडिया में और
उन्होंने तस्लीम कर दिया इसे मेरी कमज़ोरी
वे नहीं जानते थे कि
एक लेखक के लिए कितनी बड़ी हो सकती है
लफ़्फ़ाजी की सज़ा।